आँवले का परिचय :- दोस्तों आंवले का पेड़ भारत के प्राय: सभी प्रांतों में पाया जाता है। तुलसी की तरह आँवला भी धार्मिक दृश्टिकोण से पवित्र माना जाता है। स्त्रियां इस पेंड़ की पूजा भी करती हैं। आंवले के पेड़ की औसतन ऊचांई 6 से 8 तक मीटर तक होती है। आंवले के पत्ते इमली के पत्तों की तरह होते हैं। छोटे आंवलों में गूदा कम और गुठली बड़ी होती है। औषधीय प्रयोग के लिए छोटे आंवले ही सबसे अधिक प्रयोग किये जाते हैं।
भाबासीर के मरीजों के लिए आँवला का सेवन बहुत ही फायदेमंद और लाभकारी होता है।
- आंवलें के फल को अच्छी तरह से पीसकर एक मिट्टी के बरतन में अंदर की ओर लेप कर देना चाहिए। फिर उस बर्तन में छाछ भरकर रख दें। उस छाछ को रोगी को पिलाने से बवासीर में जल्द ही आस्चर्यजनक रूप से लाभ होता है।
- यदि रोगी के बवासीर के मस्सों से अधिक खून बहता है तो 3 से 8 ग्राम आंवले के चूर्ण का सेवन दही की मलाई के साथ दिन में 2-3 बार करें। इससे रोगी को जल्द ही आराम मिलता है।
- सूखे आंवलें के फल का चूर्ण 20 ग्राम लेकर 250 मिली पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रात भर भिगोकर रख दें। अगले दिन सुबह उसे हाथों से मलकर साफ़ बर्तन में छान लें। इस छने हुए पानी में 5 ग्राम चिरचिटा की जड़ का चूर्ण तथा 50 ग्राम मिश्री मिलाकरपी लें। इस प्रकार से सेवन करने से बवासीर कुछ दिनों में ही ठीक हो जाती है और मस्से भी सूखकर गिर जाते हैं।
- सूखे आंवलें के फल को बारीक पीसकर बना कर रख लें। अब इस चूर्ण को प्रतिदिन सुबह-शाम 1 चम्मच दूध या छाछ के साथ पीने से खूनी बवासीर जल्द ही ठीक हो जाती है।
- आंवलें के फल का बारीक चूर्ण 1 चम्मच, 1 कप मट्ठे के साथ दिन में 3 बार लें। अथवा एक चम्मच आंवले का चूर्ण दही या मलाई के साथ दिन में तीन बार खाने से खुनी व वादी भाबासीर ठीक हो जाती है।

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